Sunday, October 4, 2009

खते-तकदीर में ये भी लिखा था

जिगर मलिका का और उल्फत के सदमे
खते-तकदीर में ये भी लिखा था

मलिका इसी तरह जो तसव्वुर बना रहा
होगी नसीब उनकी जियारत तमाम रात

मलिका जॉन, एक अर्मीनियाई ईसाई महिला थी। पैदाइश और परवरिश बनारस में हुई। बाद में वह कलकत्ते जा बसी और गायकी और नृत्य में खासी शोहरत हासिल की। वहां हर शाम उसके यहां महफिल जमती थी, नृत्य और गायन की मौजें उमड़ती रहती थीं। गायन और नृत्य के अलावा, मलिका जॉन को शेरो-शाइरी से भी खासा लगाव था और यह फन उसने अपने जमाने के जाने माने शाइर बन्नू साहब 'हिलाल' की शागिर्दी में हासिल किया था। उन्नीसवीं सदी के उसी आखिरी दौर में उसकी शाइरी का एक मज्मुआ भी 'मखजने-उल्फते-मलिका' नाम से शाया हुआ था, जिसकी एक प्रति लंदन की ब्रिटिश म्यूजियम लाइब्रेरी में सुरक्षित है। महान शाइर दाग देहलवी अक्सर मलिका की महफिलों में जाया करते थे और उसका कलाम पसंद करते थे। गैर भारतीय मूल की मलिका का उर्दू शाइरी में बाकमाल दखल बेमिसाल तो है ही, तारीखी हैसियत भी रखता है।

3 comments:

  1. बहुत बढिया लिखा आपने .. हिन्‍दी चिट्ठा जगत में इस नए चिट्ठे के साथ आपका स्‍वागत है .. उम्‍मीद करती हूं .. आपकी रचनाएं नियमित रूप से पढने को मिलती रहेंगी .. शुभकामनाएं !!

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