'समवाय' की योजना दुर्भाग्य से बीच में ही ठप् हो गई। शमशेर की मूल पांडुलिपि भी 'समवाय' के कागजात के साथ बंधकर न जाने कहां चली गई। न जाने कहां! बेशक उसकी एक टाइप्ड कॉपी मैं अपने साथ ला पाने में कामयाब रहा। बाद में, जब 'युवकधारा' पत्रिका का संपादन-दायित्व मेरे जिम्मे आया, तो उसमें से कुछेक कविताएं मैंने पत्रिका के अंकों में छापीं और पत्रिका की सामर्थ्यानुसार मानदेय के चेक के साथ उनकी प्रतियां शमशेर जी को भेजीं। हालांकि उनकी कोई पावती सूचना नहीं मिली। शमशेर जी के स्वभाव में नहीं थी ज्यादा खतोकिताबत। वैसे, उन्हीं में से एक कविता शमशेर के आगामी संग्रह की शीर्षक कविता बनी। एकाध को छोड़ कर, उस मसविदे की अन्य कविताएं भी उनके अन्य संग्रहों में आ चुकी हैं। फिर भी, उस मसविदे का ऐतिहासिक महत्त्व है। ऐतिहासिक इसलिए, कि वह सवक्तव्य कविताओं की शक्ल में है। लिहाजा, कविता के, शमशेर के अपने सौंदर्यशास्त्र से संदर्भित कतिपय मूल्यवान टिप्पणियां भी उसमें हैं। उक्त मसविदा इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है, कि उसमें सम्मिलित कविताओं के पाठ, शमशेर के कविता संग्रहों में सम्मिलित होने तक संशोधित-परिवर्धित हुए हैं। दोनों ही दृष्टियों से शमशेर जी की कविताओं का उक्त मसौदा उनकी कविता में दिलचस्पी रखने वालों के लिए दस्तावेजी हैसियत का माना जाना चाहिए। यही सोच कर यहां उसे यथावत् पुनर्प्रस्तुत किया जा रहा है।
तीन सवक्तव्य कविताएं : शमशेर
- मेरी दिलचस्पी सदैव शिल्प की विविधता में रही है।
- रोमानी, यानी सौंदर्य की जिज्ञासा लिये हुए, उस की/के अस्पष्ट से मूल्यांकन के साथ।
- अपने बाहर के यथार्थ जीवन की नवीन परंपरा की अनुभूति, जहां हम मानव-मात्र के लिए शांति और सुख की कामना करते हैं...
- फिर एक ऐसी खोज की कविता, जो कवि के अंतर में ही संभव और सुलभ है, बिंबों के माध्यम से अलग-अलग फ्रेम- रजनी के, प्रेम और प्रतीक्षा के, कला के मर्म को झलकाने के...
- मेरी दिलचस्पी शब्द-शिल्प से अधिक स्वर-शिल्प, विशेषकर दीर्घ स्वरों के प्रयोगों में रही है। स्वाभाविक अभिव्यक्ति के जो विराम होते हैं, और उनकी गतियां : उनसे फायदा जरूर उठाता हूं।
- बिंब या 'इमेज' में मेरी दिलचस्पी सीधी नहीं है। अनुभूति की अपनी रौ में वे आते हैं और चले जाते हैं। इसी रौ के खटके उन्हें मिलाते और अलग करते हैं, उनका प्रभाव ही अपेक्षित होता है...
पूरी कविता के लिए, अलग से किसी चित्रात्मक प्रभाव के लिए नहीं।
- गजल की जमीनें (छंद और तुक-योजना का स्वरूप) और बहरें (छंद) भी कुछ इसी तरह मेरी भावनाओं को उभारती और अपनी विभिन्न गतियों और प्रकारों में खींच ले जाती हैं।
- बहरहाल जो कविताएं मैं पेश करने जा रहा हूं, उनके मेरी कोशिश का कुछ अंदाजा लगेगा।... (जारी)
पढ़ रहा हूँ। प्रतीक्षारत हूँ।
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