Monday, January 18, 2010

सैकड़ा शमशेर -6


शमशेर


फूल की नाजुक-मिजाजी को
तुम भले कोई नाम न दो
मैं मगर
देना चाहूंगा उसे
एक नाम--
शमशेर!

शिशु की दुग्ध-धवल किलकारी को
तुम भले कोई नाम न दो
मैं मगर
देना चाहूंगा उसे
एक नाम--
शमशेर!

शा'इर की जांफिशानी को
तुम भले कोई नाम न दो
मैं मगर
देना चाहूंगा उसे
एक नाम--
शमशे...र!

-सुरेश सलिल (शमशेर की पचहत्तरवीं सालगिरह के मौके पर लिखी गई और 'खुले में खड़े होकर' कविता संग्रह में प्रकाशित)



शमशेर की एक कविता और उसका अंग्रेजी तर्जुमा

सींग और नाखून
लोहे के बख्तर कंधों पर।

सीने में सूराख हड्डी का।
आंखों में घास-काई की नमी।

एक मुर्दा हाथ
पांव पर टिका
उल्टी कलम थामे।

तीन तसलों में कमर का घाव सड़ चुका है।

जड़ों का भी कड़ा जाल
हो चुका पत्थर।


The horns and the nails
Iron-made armours on the shoulders.

In the chest, a hole made by a bone
In the eyes : moisture of grass and moss.

A dead hand
staying on the foot
and picking a down-ward pen.

The wound of the waist has been
putrefied in three bowles.

Even the tough network of the roots stonified.

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