Tuesday, January 12, 2010

सैकड़ा शमशेर -1

आज 13 जनवरी है। सन 2010 की 13 जनवरी। हमारे 'इतने पास अपने' कवि शमशेर जी, यानी शमशेर बहादुर सिंह की पैदाइश का सौवां साल आज से शुरू हो रहा है। और शुरू हो रहा है इस सिलसिले को आगे बढ़ाता जलसों का सिलसिला भी। इन जलसों में शिरकत के साथ-साथ, हर उस शख्स के, जो शमशेर की ही तरह शा'इरी को, और ऑक्सीजन को, और मार्क्सवाद को जिंदगी की बुनियादी जरूरतें मानता है, अपने हौसले- दिल के वलवले- हो सकते हैं अपने महबूब शा'इर को- उसकी पैदाइश के सौवें साल के दरमियान- जो अपने आप में (बकलम खुद) 'करोड़ों किरनों की जिंदगी का नाटक सा' है- एक नज्म की तरह पढ़ने के, सुनने के, देखने के।
इसी हौसले, या कि वलवले ने यह हौसला पैदा किया मेरे दिल में, कि आज से एक साल तक, यानी 13 जनवरी 2011 तक 'सुसवीक्षा' की सारी किस्तें शमशेर जी के नाम दर्ज की जाएं। इसकी डिजाइन, जेहन में, कुछ-कुछ कोलाज किस्म की है- शमशेर से संदर्भित मेरी अपनी चीजें, शमशेर की शा'इरी को अंग्रेजी में उल्था करने की (मेरी) बालोचित कोशिशें, औरों के सटीक अंश तथा खुद शमशेर के खजाने के चुनिंदा-पसंदीदा हीरे-मोती।
उम्मीद है, आप इन किस्तों को पढ़ेंगे और अपनी राय भी देंगे।

शा'इर इक्
नाम है जिसका
शमशेर
पूरा आईना है उसका हर शे'र
धड़कता सीना है
शा'इर
शमशेर

मां के आंचल की तरह पाक है वो
दिल ही दिल है, न जिस्मे-खाक है वो
सच कहूं-
शा'इरी की
नाक है वो!

येस्!
शीन और मीम
और फिर
शीन, छोटी ए के साथ, और
अखीर में रे!

हर्फ-ब-हर्फ एकदम खरे-
शे'रियत से शमशेरियत तक-
श म् शे ए ए र!

शमशेर की एक कविता और उसका अंग्रेजी तर्जुमा

शाम और रात : तीन स्टेंजा

तकिये पे
सुर्ख गुलाब मैंने
समझे-
दो

सेब मैंने समझे दो...
क्यों?

वो तो...वो तो
दो दिल थे।


संग
-शाम का रंग लपेटे
तुम थे

- तकिये पे सिर्फ मेरा सिर था :
आंखों में
रात जल रही थी।

The Evening and the Night : Three stanzas

On the pillow
I felt two red roses...

I felt two apples...
why?

Those were...
those were actually two hearts.

Alongwith
-wrapped up with the shade of evening
were you,

- There, on the pillow, was only my head
and night was flaming in the eyes.

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